Khanwa Ka Yudh :- दोस्तो, आज हमने हमारे इस लेख में खानवा का युद्ध, के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान की है। हमारा यह लेख पढ़ने के पश्चात हमें आशा है कि आपको खानवा का युद्ध के बारे में जानकारी हासिल हो जाएगी। हमने हमारे इस लेख में खानवा का युद्ध, राणा सांगा की सेना, मुगल सम्राट बाबर की सेना, युद्ध की शुरुआत, खानवा युद्ध का कारण तथा खानवा का युद्ध से संबंधित सवालों के जवाब दिए हैं।
हमने यह आर्टिकल कक्षा 6, 7, 8, 9 10 11 के विद्यार्थियों के लिए लिखा है। अतः हमारा यह लेख Khanwa Ka Yudh पूरा पढ़े।

Table of Contents
खानवा का युद्ध – Khanwa Ka Yudh In Hindi
खानवा का युद्ध (Battle Of Khanwa) :- यह युद्ध मेवाड़ के राजा राणा सांगा वह मुगल साम्राज्य के बादशाह बाबर के बीच 17 मार्च 1527 ईस्वी में हुआ ।जिसमें राणा सांगा को हार का सामना करना‘खानवा’ पड़ा और बाबर की विजय हुई खानवा का युद्ध(Khanwa Ka Yudh) भरतपुर व धौलपुर के बीच गांव में ‘गंभीरी नदी’ के किनारे लड़ा गया ।
राणा सांगा का परिचय – Rana Sanga Ka Itihas
राणा सांगा का परिचय (Biography Of Rana Sanga) :- राणा सांगा का जन्म 12 अप्रैल 1482 ई. में हुआ था इनका जन्म चित्तौड़गढ़ में हुआ इनके पिता का नाम राजा रायमल व माता का नाम रानी रतन कुवंर (चौहान राजकुमारी) था ।
ये राणा रायमल के सबसे छोटे पुत्र थे राणा सांगा के तीन भाई थे राजा रायमल ने अपना नया राज्य बनाने की सोची जिसमें उनके चारों पुत्रों में से सबसे अच्छा यौद्धा होगा उसे वह अपना राजा घोषित करेंगे ।
इन्हीं परिस्थितियों के कारण और अपने भाइयों पृथ्वीराज और जगमाल के साथ एक भयंकर संघर्ष करने पर उन्होंने अपनी एक आंख गंवा दी और अंत में सन् 1508 में मेवाड़ के सिंहासन पर बैठा और फिर एक विशाल यौद्धा संग्राम सिंह महाराणा सांगा के नाम से जाना जाने लगा उन्होंने समय के साथ अपना बहुत बड़ा वर्चस्व स्थापित कर लिया ।
खानवा युद्ध का कारण – Khanwa Yudh Ka Karan In Hindi
खानवा युद्ध का कारण (Region Of Khanwa Battle) :- खानवा युद्ध का कारण यह था कि बाबर हिंदुस्तान में अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता था उसने दिल्ली पर राज करने के बावजूद वह अपना सपना पूरा करना चाहता था ।
उसका सपना था पूरे हिंदुस्तान पर राज करना ।
जिसके चलते यह बात राणा सांगा (संग्राम सिंह) को मंजूर नहीं थी राणा सांगा ने सोचा कि बाबर भी अन्य लुटेरों की तरह भारत को लूटना चाहता है फिर उनको पता चला कि बाबर हिंदुस्तान में अपना वर्चस्व जमाने की सोच रहा है इसलिए राणा सांगा ने बाबर को देश से भगाने की सोच ली और राणा सांगा बाबर से लोहा लेने के लिए तैयार हो गए और यह लड़ाई बहुत बड़े युद्ध में तब्दील हो गई अतः इन बातों के मुताबिक यह खानवा के युद्ध का कारण बना।
खानवा युद्ध की शुरुआत – Khanwa Yudh Ki Suruaat
खानवा युद्ध की शुरुआत (Beginning Of The Khanwa Battle) :-16 मार्च 1527 को युद्ध की शुरुआत हुई और बाबर ने जैसा पहले पानीपत के युद्ध में किया था ठीक उसी प्रकार सेना की सजावट की इसमें उसने सबसे आगे रथों को जोड़कर उनके बीच में तोपें लगाई इसमें से अश्वारोही सैनिकों के निकलने के लिए स्थान बनाया गया था इस प्रकार की युद्ध तकनीकी भारत के लिए बिल्कुल नई थी इस तकनीक को युद्ध की ‘तुलुग्मा पद्धति’ भी कहते हैं बाबर ने राणा सांगा की सेना को हरा दिया और उसने मृतक सैनिकों के सिर को जोड़कर एक मीनार बनवाई इसके पहले भी इस्लामी हमलावार इस तकनीक का इस्तेमाल करते थे इस युद्ध में राणा सांगा बुरी तरह घायल होने के बाद भाग निकले लेकिन कुछ समय बाद उन्ही के सेनानायक ने उनको जहर देकर मार डाला ।
राणा सांगा की सेना – Rana Sanga Ki Sena In Hindi
राणा सांगा की सेना (Rana Sanga’s Army) :- इस युद्ध में राणा सांगा की सेना में 7 शक्तिशाली राजा, 104 सरदार वे 9 राव ने भी भाग लिया था ।
इस युद्ध में राणा सांगा का साथ मारवाड़,अम्बर, ग्वालियर,अजमेर,हसन खां मेवाती बसीम चंदेरी एवं अब्राहिम लोदी का भाई महमूद लोदी दे रहे थे ।
राणा सांगा की सेना का नेतृत्व करने वाले राजा :-पृथ्वीराज कछवाड़ा मालदेव,राठौड़ वागड़ के उदय सिंह,रायमल राठौड़,मेदिनी राय,हसन खान मेवाती,रतन सिंह मेरता,माणिक चंद्र चौहान,चंद्रभान चौहान,रतन सिंह चंदावत,राजा राणा,अज्जा झाला,राव रामदास,गोकलदास परमार आदि ।
राणा सांगा की सेना में शामिल हुई सेना :- राणा सांगा की सेना में 110000 सैनिक और 500 हाथी थे। जिसमें 57000 राजपूत सैनिक,12000 मुस्लिम राजपूत सैनिक और 10000 अफगानी सैनिक शामिल थे । 90000 सैनिक युद्ध के दूसरे दिन शामिल हुए थे ।
इस युद्ध में राणा सांगा की इतनी सेना का बाबर की सेना को पता चला तब बब्बर की सेना का मनोबल टूटने लगा ।
मुगल सम्राट बाबर की सेना – Babar Ki Sena In Hindi
मुगल सम्राट बाबर की सेना (Babur’s Army) :- बाबर की सेना में 200000 सैनिक शामिल थे। जिसमें 50000 घुड़सवार व 102000 पैदल यात्री व अन्य कुंडा, बंदूखें लेकर बाबर के साथ खड़े थे। 50 तोपें 30,000 सिल्हदी (युद्ध के दौरान शामिल हुए थे)।
बाबर की सेना का नेतृत्व करने वाले सेनापति :- बाबर, हुमायूं, बैरम खान, उस्ताद अली, कुली मुस्तफा, रूमी चिन, तैमूर खान, मीर खलीफा, मीर अब्दुल अजीज, मीर मोहम्मद अली खान, खुसरो शाह कोकुलतास, कासिम हुसैन खान, जमान मिर्जा अस्करी, मिर्जा हिंडाल, मिर्या सैय्यद महदी ख्वाजा असद मलिक, हस्त राजा अली खान ।
राणा सांगा की पराजय के कारण – Rana Sanga Ke Harne Ke karan
राणा सांगा की पराजय के कारण (Reasons For The Defeat Of Rana Sanga) :- राणा सांगा एक विशाल योद्धा होने के बावजूद भी उनको खानवा के युद्ध पराजय का सामना करना पड़ा क्योंकि राणा सांगा ने इस युद्ध में एक विशाल सेना तो स्थापित कर ली लेकिन उनका साथ दे रहे राजपूतों की सेना में अलग-अलग सेनापति थे इसलिए उनकी सेना तितर-बितर होने लगी।
दूसरा कारण यह भी था कि अफगान शासक इब्राहिम लोदी का छोटा भाई महम्मुद लोदी जो राणा सांगा का साथ देने के लिए तैयार था वह युद्ध के समय उनका साथ छोड़कर बाबर के साथ मिल गया।
तीसरा कारण यह था कि उसने 90000 सैनिक युद्ध के दूसरे दिन शामिल किए इन कारणों की वजह से ही राणा सांगा को हार का सामना करना पड़ा।
राणा सांगा की सोच व बाबर का कथन
राणा सांगा की सोच (Thoughts Of Rana Sanga) :- राणा सांगा की सोच यह थी कि दिल्ली के सुल्तान के बाद सबसे अधिक शक्तिशाली शासक चित्तौड़ का राजा नरेश राणा सांगा हैं।
राणा सांगा का दूसरा नाम ‘संग्राम सिंह’ राणा सांगा ने इस युद्ध में इब्राहिम लोदी और बाबर के युद्ध में तटस्थ की नीति अपनायी ।
सांगा का विचार था कि बाबर लूट-मार करके वापस चला जाएगा तब लोदी शासन को हटा दिल्ली में हिंदू राज्य का सुयोग उसे ही प्राप्त हो जाएगा लेकिन जब राणा सांगा को पता चला कि बाबर हिंदुस्तान में मुगल साम्राज्य स्थापित करने की सोच रहा है तो वह युद्ध के लिए तैयार हो गए ।
राणा सांगा एक वीर व कुशल सेनानी था इन्होंने अनेक युद्धों में विजय प्राप्त की थी उन्होंने अपने मन में ठान ली थी कि बाबर को भारत में मुगल साम्राज्य नहीं स्थापित करने देंगे बाबर को भारत से खदेड़ने की सोच ली और युद्ध के लिए तैयार हो गए।
बाबर का कथन (Statement Of Babur) :- राजपूतों से युद्ध करते हुए तुर्कों के पैर उखड़ गए जिससे राजपूतों की विजय और तुर्कों की पराजय दिखाई देने लगी थी किंतु जब बाबर के तोपखाने ने आग बरसाई तक सांगा की जीती बाजी हार में बदल गई फिर भी सांगा और उसके वीर मरते दम तक लड़ते रहे।
बाबर ने राजपूतों के बारे में लिखा है – यह मरना-मारना तो जानते हैं किंतु युद्ध करना नहीं जानते।
बाबर का हिंदुस्तान पर राज करने की ख्वाहिश In Hindi
बाबर का हिंदुस्तान पर राज करने की ख्वाहिश :- बाबर हिंदुस्तान पर फतेह हासिल करने के लिए काबुल से अपनी सेना के साथ निकला हिंदुस्तान पर राज करने की ख्वाहिश काफी बड़ी थी उससे अपनी ख्वाहिश पूरी करने के लिए अपने साथ बहुत बड़ी सेना संगठित कर ली बाबर हिंदुस्तान की बजाए काबुल को भी अपने वर्चस्व में शामिल करना चाहता था ।
बाबर ने काबुल पर राज जमाने के बाद उसने कई दिनों का लम्बा सफर तय किया और झेलम नदी के किनारे पहुंचने में कामयाब हो गया कुछ समय नदी के किनारे आराम किया और फिर हिंदुस्तान में प्रवेश करने में सफल रहा हिंदुस्तान में प्रवेश करने के बाद कई रियासतों पर अपना कब्जा कर लिया ।
वह अपनी ख्वाइशों को पूरा करने के लिए बड़ी से बड़ी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार था बहुत सी रियासतों को अपने कब्जे में लेने के बाद पानीपत का प्रथम युद्ध 21 अप्रैल 1526 ईस्वी में बाबर एवं इब्राहिम लोदी के बीच हुआ जिसमें बाबर ने इस में विजय हासिल कर ली और दिल्ली में अपना राज जमाया।
बहुत ही कम समय में दिल्ली में अपनी बादशाहत जमा ली लेकिन वह पूरे हिंदुस्तान पर राज करना चाहता था इसलिए उसे पता था कि जब तक राणा सांगा है तब तक हिंदुस्तान पर राज करना मुश्किल ही नहीं नामुनकिन है।
बाबर यह भी जानता था कि राणा सांगा कई बार दिल्ली,मालवा और गुजरात पर चढ़ाई कर चुके थे बाबर को इस बात का भी पता था कि भारत में ऐसा कोई योद्धा नहीं है जो राणा सांगा से लड़ने के लिए तैयार हो।
राणा सांगा ने बाबर को दिल्ली का राजा मानने से इनकार कर दिया था वह स्वयं को दिल्ली का सम्राट मानते थे इसलिए बाबर राणा सांगा से लड़ने के लिए तैयार हो गए और उन्होंने पानीपत के बाद यह दूसरी लड़ाई लड़ी जो कि खानवा का युद्ध था इस युद्ध में विजयी होने के बाद उत्तरी भारत पर अपना कब्जा स्थापित कर लिया।
युद्ध स्थल व बाबर द्वारा उसके सैनिकों का उत्साह वर्धन
युद्ध स्थल (Battlefield) :- गंभीरी नदी जिसे उयंगन नदी के नाम से भी जाना जाता है यह नदी मध्यप्रदेश के जावरा की पहाड़ियों (रतलाम) से निकलती है जो कि राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में निंबाहेड़ा में प्रवेश करती है चित्तौड़ दुर्ग के पास यह बेड़च में मिल जाती हैं।
गंभीरी की महत्वपूर्ण सहायक नदियां बाणगंगा, सेसा, खेर और पार्वती है यह नदी राजस्थान व उत्तर प्रदेश के बीच सीमा स्थापित करती है और अंत में यह ‘मेंयामा’ मे मिल जाती है।
बाबर द्वारा उसके सैनिकों का उत्साह वर्धन :- महाराणा सांगा का नाम सुनकर बाबर की सेना भयभीत हो उठी और पीछे हटने लगी इस बात का पता बाबर को चला तो अपनी सेना उत्साह बढ़ाने लगा और उन्हें पिछले युद्ध के बारे में ज्ञात कराने लगा कि कैसे हम ने अफगान राज्य पर कब्जा किया और वैसे ही हमें राणा सांगा को पराजित करना है।
बाबर ने सैनिकों को मदिरा देना भी बंद कर दिया और मदिरा (शराब) के पात्रों को तुड़वा दिया और बाबर ने अपनी सेना का उत्साह बढ़ाने के लिए पानीपत के प्रथम युद्ध की याद दिलाई कि कैसे उन्होंने अपने पराक्रम और शौर्य का प्रदर्शन किया।
इससे सैनिकों को एक प्रेरणा मिली और युद्ध के लिए तैयार हो गए फिर बाबर में राणा सांगा के खिलाफ अपनी युद्ध नीति सैनिकों को समझायी और बताया कि खानवा का युद्ध जीतना हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है।
राणा सांगा की मृत्यु – Death Of Rana Sanga In Hindi
राणा सांगा की मृत्यु (Death Of Rana Sanga) :- राणा सांगा की मृत्यु 30 जनवरी 1528 ई. में कालवी नामक स्थान पर हुई राणा सांगा ने (1508 – 1528 तक मेवाड़ (राजस्थान) में शासन किया।
इन्होंने अपने जीवन में 18 महायुद्ध लड़े थे और सभी युद्धों में विजयी हुए और उन्होंने सभी आस-पास की रियासतों पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया था व उन्होंने अपने जीवन का 19 वां युद्ध जो कि इनके जीवन का सबसे बड़ा युद्ध जिसमें यह बुरी तरह से घायल हो गए थे और पराजय का सामना करना पड़ा लेकिन ये वहां से किसी तरह बच निकले और कालपी नामक स्थान पर चले गए और वहां पर इन्ही के निजी सेनापति ने इनको जहर पिला दिया जिससे इनकी 30 जनवरी 1528 को इनकी मृत्यु हो गई।
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घाघरा का युद्ध | Ghaghra Ka Yudh
हल्दीघाटी का युद्ध | Haldighati Ka Yudh | Battle Of Haldighati
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